अर्नव की गिरफ्तारी के मायने, अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरा

सौजन्य लेख :: विजया पाठक, भोपाल। 



       रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी को मुंबई पुलिस ने आत्महत्या के एक पुराने मामले में आज सुबह गिरफ्तार किया है। अर्नब की गिरफ्तारी को राजनेताओं ने, पत्रकारों ने और आमजनों ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला और आपातकाल के दिनों की याद कराने वाला बताया है। पत्रकार अर्नब गोस्वामी पर हमला करना सत्ता के दुरुपयोग का एक उदाहरण है। हम सभी को भारत के लोकतंत्र पर इस हमले के खिलाफ खड़ा होना चाहिए। अभिव्‍यक्ति की आजादी पर कोई सरकार कैसे अंकुश लगा सकती है। मानते हैं कि अर्नब तीखे और तल्‍ख सवाल पूछते हैं। क्‍यों न पूछें, वह पत्रकार हैं। सवाल पूछना पत्रकार का हक है। यही तो अभिव्‍यक्ति की आजादी है। इसलिए लोकतंत्र में पत्रकारिता का बड़ा महत्‍व है। यदि इसे ही दबाया गया, कुचला गया तो यह कैसा लोकतंत्र हुआ। हम देख रहे हैं कि पिछले कुछ दिनों से देश की मीडिया से इस तर ह का ही बर्ताव किया जा रहा है। मध्‍यप्रदेश में भी कमलनाथ सरकार के दौरान एक मीडिया संस्‍थान पर कुछ इस तरह की कार्रवाई की गई थी। वहीं छत्‍तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार में भी पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं। उन्‍हें विज्ञापन रोककर आर्थिक रूप से कमजोर किया जा रहा है। यानि राज्‍यों की सरकारें पत्रकारिता की परिभाषा ही बदलने पर अमादा हैं। वह चाहती हैं कि मीडिया संस्‍थान सरकार की गुलामी करें। जैसा सरकारें चाहती हैं वैसा ही मीडिया करे।


       निश्चित तौर पर उद्धव ठाकरे सरकार ने यह पूरा ड्रामा अर्नब को सबक सिखाने के लिए किया है। मुंबई पुलिस ने बड़े ही निर्मम तरीके से अर्नब गोस्‍वामी को गिरफ्तार किया उसके परिवार को परेशान किया। पुलिस एके 47 लेकर उन्‍हें गिरफ्तार करने पहुंची थी। मानो वह बहुत बड़े आतंकवादी हैं। मुंबई पुलिस कमिश्‍नर परमजीत सिंह पर भी कार्रवाई होनी चाहिेए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट को भी इस बदले की कार्रवाई पर संज्ञान लेना चाहिए। बताया जा रहा है कि उनकी गिरफ्तारी की जानकारी उनकी पत्नी को नहीं थी। उनके साथ दो पुलिस अधिकारियों ने मारपीट की। उनके परिवार के सदस्यों को धक्का दिया गया और घर को 3 घंटे के लिए बंद कर दिया गया। उनके बाएं हाथ पर खरोंच है और उनके हाथ पर मौजूदा चोट के चलते लगी पट्टी को हटाने की कोशिश भी की गई। बताया जा रहा है कि डिजाइनर अन्वय नाइक और उनकी मां कुमुद नाइक की कथित आत्महत्या के मामले में उकसाने के आरोप में आईपीसी की धारा 306 के तहत अर्नब को गिरफ्तार किया गया है। मई 2018 में आत्महत्या से पहले लिखे एक खत में अन्वय नाइक ने आरोप लगाया था कि अर्नब गोस्वामी ने रिपब्लिक नेटवर्क के स्टूडियो का इंटीरियर डिजाइन कराने के बाद भुगतान नहीं किया था।


       गौरतलब है कि हाल के दिनों में अर्नब ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को निशाने पर लिया है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर समेत कई केंन्‍द्रीय मं‍त्रियों ने गोस्वामी की हिरासत को अभिव्‍यक्ति की आजादी पर हमला बताया है। कोई असहमत हो सकता है, बहस कर सकता है और सवाल भी पूछ सकता है। हालांकि अर्नब गोस्वामी के कद के पत्रकार को पुलिस पावर का दुरुयोग करते हुए गिरफ़्तार करना, क्योंकि वो सवाल पूछ रहे थे, ये ऐसी घटना है जिसकी हम सभी को निंदा करनी चाहिए। अर्नब गोस्वामी की गिरफ़्तारी गंभीर रूप से निंदनीय, अनुचित और चिंताजनक है। 1975 की निर्दयी इमरजेंसी का विरोध करते हुए सबने प्रेस की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी थी। यह हमें उन आपातकालीन दिनों की याद दिलाता है, जब प्रेस के साथ इस तरह से व्यवहार किया गया था। मेरा मानना है कि यह फॉसीवादी कदम अघोषित आपातकाल का संकेत है।


       निश्चित तौर पर आज जो लोग आज अर्नब के समर्थन में खड़े नहीं हैं, वो फासीवाद का समर्थन कर रहे हैं। हो सकता है आप उन्हें पसंद ना करते हों, हो सकता है आप उनसे सहमत नही हों, हो सकता है आप उनके अस्तित्व को तुच्छ समझते हों, लेकिन अगर आप चुप रहते हैं तो आप दमन का समर्थन करते हैं। अगर अगले आप हुए तो कौन बोलेगा? हम सभी को भारत के लोकतंत्र पर इस हमले के ख़िलाफ़ खड़ा होना चाहिए।


       आज अर्णब कल कोई और परसों आपका भी नंबर आयेगा। अगर आज एकजुट होकर इन निर्मम सत्ताधीशों के खिलाफ आवाज बुलंद नहीं किये तो आगे आपको पालतू कुत्ता बना दिया जायेगा। कल कोई रिपोर्टर कैमरा लेकर निकलने से कतारायेगा। अंगार उगलने वाली कलम की स्याही, तारीफ की चासनी में डुबोकर चापलूसी की गीत गायेंगें। अर्णब गोस्वामी से अनेकों असहमतियां होगी, होनी भी चाहिए लेकिन आज किसी सत्ता ने सीधे लोकतंत्र के चौथे खंभे पर लात मारी है, जिसका प्रतिकार करना जरूरी है। वरना कल तुम्हारी, हमारी सबकी दुर्दशा तय है।