मीडिया के हित की एक लड़ाई जो हरदा से लड़ी गई

     आज यह सब बातें कुछ भी नहीं हैं, सिवाय आपस में बुद्धिविलास के। कभी इसी हरदा शहर में मैने एक पत्रकार 


साथी महमूद अली चिश्ती के साथ मिलकर देश के मीडिया जगत का भला करने में गिलहरी योगदान किया। तब उस मामले को लेकर देश के नामचीन वकील हरदा आए थे। 


   देश की सबसे बड़ी समाचार एजेंसी जिसकी स्थापना पूर्व प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने की थी। आज से लगभग 10-15 वर्ष पूर्व इस न्यूज़ एजेंसी तत्कालीन केंद्र सरकार ने इसे खत्म करने व आंचलिक प्रतिनिधियों को बेदखल करने का एक निर्णय अपनी कैबिनेट से लिया था। जो लागू होने वाला था। 


  - तब दैनिक जागरण में जिला स्तर पर एक छोटे रिपोर्टर रहते हुए मुझे और साथी पत्रकार श्री चिश्ती जो पत्रकार संगठन के बड़े पदाधिकारी को भनक लगी। चूंकि मामला राष्ट्रीय स्तर का था मगर देश के महानगर दिल्ली मुंबई या इस जैसे मुख्यालय पर इस बारे में न तो राजनीतिक हलचल हुई और न ही मीडिया जगत ने यह खबर बड़े अखबारों की " डेश" खबर भी नहीं बनाई। 


 - उस घड़ी में एक मित्र पत्रकार के साथ मेरे एक पत्रकार साथी की चर्चा हुई।तब हमें आश्चर्य हो रहा था कि इस मसले पर अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर भी कुछ जागरूक लोग आगे नहीं आए। मन में यह संदेह भी था कि कहीं हम जो सोच रहे हैं वह गलत तो नहीं है। बहरहाल-


हमने इसके डॉक्युमेंट बुलाए जो सब केे सब खालिस अंग्रेजी में थे। इन्हें जिला पत्रकार संघ के तत्कालीन अध्यक्ष ने छापने के लिए मुझे न देकर अन्य (?) लीडिंग अखबारों के कुछ खास प्रतिनिधियों को भेज दिया। मुझे बुरा तो लगा मगर मैनेे कुछ नहीं कहा।


  - मगर दूसरे या तीसरे दिन उन सभी ने इसकी मूलकाॅपी वापस कर दी - यह कहकर कि इसका हिंदी अनुवाद भेजें। तब श्रीमानजी ने इसका अनुवाद करने के लिए हरदा के हिंदी-अंग्रेजी भाषा के ज्ञानियों को भेजा तो उन्होंने समय की कमी बताकर वापस भेज दिया कि 10-15 पन्ने का यह सेट इतनी जल्दी अनुवादित नहीं हो पाएगा। 


  - संयोग से उस रोज रात्रि 9 बजे मैं पत्रकार संघ के कार्यालय


पहुंचा तो इस मामले की रिपोर्ट देखी। यह देख मैने कहा कि इतने बड़े मामले को अब तक क्यों नहीं उठाया।


  - यह सुनकर अध्यक्ष ने मुझे अनुवाद करने को कहा तो मैने अनुवाद कर कहा कि मामला राष्ट्रीय स्तर का है। यह खबर दिल्ली से लग सकती है। मगर हरदा से कोर्ट में पिटीशन हो जाए तो यह खबर यहां से भी लगाई जा सकती है। 


  - यह सुनकर श्रीमान जी ने एक अधिवक्ता के माध्यम से केंद्र के निर्णय के खिलाफ याचिका लगवा दी। उस दिन मुझसे खबर-प्रेस नोट बनवाकर भी पत्रों के प्रतिनिधियों को छापने हेतु भेज भी दिया। 


  - जब इसकी पेशियां शुरू हुई तो यहां आने व बड़े वकीलों की भीड़ सी लगने लगी। इसकी पेशी शुरू हुई तो यहां आने व बड़े वकीलों की भीड़ सी लगने लगी। इस दौर में मुझे लिखने-पढ़ने और वकीलों को समझाने का अच्छा मौका मिला।


  - मीडिया जगत पर आए संकट के समय हरदा जैसी छोटी जगह से हमने बड़ी लड़ाई लड़ी।