अर्नब गोस्वामी से नाराजी की वजह क्या है

अर्नब गोस्वामी और रिपब्लिक भारत 


    मान लिया कि रिपब्लिक भारत टीवी न्यूज चैनल और इसके एंकर की समाचार प्रस्तुतिकरण शैली जरा कुछ निराली है या इनका स्टाइल सबसे अलग है। मगर खबरों के मर्म और इसकी महत्ता को वे अन्यों से बेहतर है इसमें दो मत नहीं। इन दिनों अचानक एक पत्रकार को लेकर यह देश का जनमानस दो अलग विचारधारा में बंट गया है। एक वर्ग उनकी राष्ट्रवादी सोच से नाराज है तो दूसरा इसके पक्ष में। यहां मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि राष्ट्रवाद में कोई धर्म शामिल नहीं होता है और इसमें सभी देशवासियों को एक साथ होना चाहिए। मगर खेदजनक यह कि विचारधारा विशेष के लोग इससे दूर रहकर काम कर रहे हैं। इस वर्ग में पहले वंदेमातरम को लेकर कोई विरोध नहीं था मगर हाल के कुछ दशकों में इसे अपने राष्ट्रगीत से ही परेशानी हो गई। इसमें कुछ दल विशेष के हिमायतियों ने भी आग में घई डालने का किया है। बहरहाल अर्नब कब और कैसे कुछ विशेष विचारधारा के लोगों की नापसंद बन बैठे कहना मुश्किल है। पर यह स्पष्ट है कि कुछ पार्टियों को यह अपनी सोच के कारण अवांछित हो उठे। जरा एक नजर डालें अर्नब गोस्वामी के पत्रकारिता कैरियर पर तो सब स्पष्ट नजर आता है कि कौन किसके हाथों में खेल रहा है। आइए जानें कौन हैं ये अर्नब गोस्वामी और कौन इनके विरोध में। 


याद करें


फरवरी 2007 में जब पाकिस्तान का विदेशमंत्री खुर्शीद कसूरी भारत दौरे पर आए तो उन्होंने देश के सभी प्रमुख न्यूजचैनलों, विशेषकर अंग्रेज़ी न्यूजचैनलों को इंटरव्यू देकर पाकिस्तानी एजेंडे का जमकर प्रचार किया था। तब


 एक इंटरव्यू ऐसा भी हुआ था-


जिसमें गर्मागर्मी बहुत ज्यादा बढ़ गयी थी और नौबत हाथापाई की आ गयी था। यह इंटरव्यू 22 फ़रवरी 2007 को खुर्शीद कसूरी का वो इंटरव्यू अर्नब गोस्वामी ने लिया था। उस समय सभी लुटियनिया न्यूजचैनलों के साथ खुर्शीद कसूरी के इंटरव्यू बहुत मीठे मीठे सवालों के साथ बहुत सुखद और शांतिपूर्ण माहौल में हंसी खुशी संपन्न हो गए थे। 


लेकिन अर्नब गोस्वामी को दिए गए इंटरव्यू में मौसम पूरी तरह बदल गया था. खुर्शीद कसूरी से अरनब गोस्वामी ने लुटियनिया दलालों की भांति मीठे मीठे सवाल नहीं पूछे थे।इसके बजाय तथ्यों तर्कों से लैस होकर अर्नब गोस्वामी ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट से सम्बंधित अपने सुलगते हुए सवालों की भारी बमबारी खुर्शीद कसूरी पर करते हुए इंटरव्यू की शुरुआत की थी।


उन सवालों से पहले तो खुर्शीदवा बुरी तरह तिलमिला गया था। उसके बाद ISI के वो अफसर अरनब गोस्वामी पर टूट पड़े थे जो खुर्शीद कसूरी के साथ पाकिस्तान से आए थे। 


दिल्ली में पकिस्तानी दूतावास केभीतर हो रहे उस इंटरव्यू को उन्होंने रुकवा दिया था। लेकिन उस समय अर्नब गोस्वामी जिस प्रकार ISI के उन अफसरों से भिड़ गया था वो नजारा प्रत्येक भारतीय, विशेषकर पत्रकारों के लिए अत्यन्त गर्व का क्षण था। 


आज अरनब गोस्वामी को गोदी मीडिया कहने वाली कांग्रेसी वामपंथी फौज क्या यह बताएगी कि उस समय अरनब गोस्वामी किस गोदी का मीडिया था.?


यहां बता दें कि 


अर्नब गोस्वामी की पत्नी एयरफोर्स में है। नाना फौज में कर्नल थे पिता पुलिस अधिकारी थे परिवार व ससुराल के अधिकांश लोग फौज में हैं। देशभक्ति व निर्भीकता उसके डीएनए में ही है। जिस समय उपरोक्त इंटरव्यू हुआ था उस समय राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य में नरेन्द्र मोदी कहीं नहीं थे। केन्द्र में वो कांग्रेसी सरकार थी जो समझौता एक्सप्रेस को तथाकथित हिन्दू आतंकवाद का नतीजा घोषित करने का कुकर्म कर चुकी थी। 


आज उपरोक्त प्रसंग का उल्लेख इसलिए क्योंकि आज अरनब का समर्थन कर रहे कुछ लोग अब अपनी इस मीनमेख को लेकर परेशान हैं कि पहले तो ये राष्ट्रवादी नहीं था, अब कैसे हो गया.? तो उनको जानकारी देने के लिए ही आज उपरोक्त घटनाक्रम का जिक्र किया कि अरनब गोस्वामी राष्ट्रवादी हमेशा से रहा है। आज महाराष्ट्र कांग्रेस मुख्यालय के स्टिंग ऑपरेशन के बाद देश में खलबली मची हुई है।


हां कुछ सामाजिक राजनीतिक मुद्दों पर उससे असहमति हो सकती है. जैसे समलैंगिकता सम्बन्धित कानून, ललित मोदी सुषमा स्वराज पर लेकिन उस दौर में भी, एक भी ऐसा प्रकरण याद नहीं जिसमें अर्नब गोस्वामी ने भारतीय सेना के खिलाफ ज़हर उगला हो।आतंकवादियों के लिए सहानुभूति प्रकट की हो।कश्मीरी अलगाववादियों/आतंकवादियों, नक्सलियों, माओवादियों और NGO गैंग की आरती उतारी हो। अरनब गोस्वामी ने ऐसा कुकर्म कभी नहीं किया जबकि उस समय लुटियनिया मीडिया यह कुकर्म जमकर कर रहा था। 


नवम्बर 2016 के नवम्बर माह में अर्नब गोस्वामी ने "टाइम्स नाऊ" की नौकरी छोड़ दी थी। अर्नब गोस्वामी के कारण ही टाइम्स नाऊ उस समय अंग्रेज़ी न्यूजचैनलों की टीआरपी सूची में बहुत बड़े अन्तर के साथ लगातार शीर्ष पर बना हुआ था।यही कारण था कि उस समय अरनब गोस्वामी देश में सर्वाधिक वेतन वाला पत्रकार था। 


 


अरनब गोस्वामी का वेतन राजदीप सरदेसाई, बरखा दत्त सरीखों से तीन चार गुना अधिक था। लेकिन इसके बावजूद अर्नब गोस्वामी ने वह नौकरी इसलिए छोड़ दी थी क्योंकि उड़ी हमले के कुछ दिनों बाद ही करन जौहर ने पाकिस्तानी एक्टर फहद खान को लेकर बनाई गई फिल्म "ऐ दिल है मुश्किल" को रिलीज किया था। 


करन जौहर के इस कुकर्म पर अरनब गोस्वामी अपनी चिर परिचित शैली में जमकर बरसा था। उड़ी हमले के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान के खिलाफ एक भी शब्द नहीं बोलने के लिए शाहरुख सलमान आमिर की खान तिकड़ी की भी अर्नब गोस्वामी ने जमकर खबर ली थी। नतीजा यह निकला था कि खान तिकड़ी और करन जौहर ने टाइम्स नाऊ के मालिक विनीत जैन से अरनब गोस्वामी पर रोक लगाने के लिए कहा था। 


कम लोगों को ही यह मालूम होगा कि बॉलिवुड में फिल्म निर्माण करने का गोरखधंधा विनीत जैन भी करता है।लेकिन अर्नब गोस्वामी ने विनीत जैन के आदेश को मानने से मना कर दिया था और खान तिकड़ी व करन जौहर समेत बॉलिवुड की पाकिस्तान भक्ति के खिलाफ़ अपने प्रहार और तीखे कर दिए थे।बात इतनी आगे बढ़ गयी थी कि अर्नब गोस्वामी ने टाइम्स नाऊ छोड़ने का फैसला कर लिया था. अरनब गोस्वामी ने इसके बाद ही रिपब्लिक चैनल खोलने का फैसला किया था। 


अर्नब गोस्वामी के समय के टाईम्सनाऊ और आज वाले टाइम्स नाऊ का फर्क़ इस एक तथ्य से समझ लीजिए कि सुशांत सिंह राजपूत की संदेहास्पद मृत्यु पर टाइम्स नाऊ भी लगातार सवाल उठा रहा था। एनसीबी की कार्रवाई का भी समर्थन कर रहा था. लेकिन जैसे ही इसकी चपेट में करन जौहर व खान तिकड़ी के सलमान और शाहरुख के आने की संभावनाएं प्रबल होने लगीं वैसे ही टाइम्स नाऊ ने केंचुल बदल दी। सुशांत सिंह राजपूत की संदेहास्पद मृत्यु को वो आत्महत्या बताने लगा तथा हाथरस कांड पर सफ़ेद झूठ फैलाने में जुट गया। 


अंत में दुःखी आत्माओं से इतना ही कहूंगा कि पहली बार हमको आपको अर्थात्‌ देश को, भारतीय सेना को, सनातनी हिन्दुत्व को और प्रखर राष्ट्रवाद को एक मुखर आवाज अरनब गोस्वामी के रूप में मिली है। आज यही अर्नब कुछ लोगों के निशाने पर हैं तो कुछ इन्हें आइकॉन के रूप में देख रहे। मैने भी सोचा कि उनके बारे में कोई विचार बनाने से पहले आप उनके इस पत्रकारिता कैरियर को जरूर जान लें।